इजराइल और ईरान के बीच का तनाव कोई नई बात नहीं है। इसका इतिहास कई दशकों तक फैला हुआ है। 1979 की ईरानी इस्लामी क्रांति के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में भारी गिरावट आई। क्रांति से पहले, ईरान और इजराइल के बीच मजबूत कूटनीतिक और आर्थिक संबंध थे, लेकिन क्रांति के बाद ईरान ने इजराइल को “दुश्मन” के रूप में घोषित कर दिया और उसके खिलाफ सख्त रुख अपनाया।
ईरान के नेताओं ने लगातार इजराइल को “विनाश के योग्य” बताया है, जबकि इजराइल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना है। इन बयानों और कार्यवाहियों ने दोनों देशों के बीच के विभाजन को और गहरा कर दिया है।
ईरान का परमाणु और इजराइल की चिंताएँ
इजराइल और ईरान के बीच सबसे महत्वपूर्ण तनाव का कारण ईरान का परमाणु कार्यक्रम है। इजराइल का मानना है कि अगर ईरान परमाणु हथियार विकसित करता है, तो वह उसके लिए एक बड़ा खतरा होगा। ईरान, हालांकि, दावा करता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन इजराइल और पश्चिमी देशों को इस दावे पर संदेह है।
इजराइल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इजराइल की सुरक्षा के लिए यह मुद्दा इतना संवेदनशील है कि उसने इस संबंध में सैन्य कार्यवाही के विकल्प को भी खुला रखा है।
क्षेत्रीय शक्तियों और हितों की भूमिका
मध्य पूर्व में इजराइल ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। के बीच संघर्ष केवल दो देशों के बीच का मामला नहीं है। इसमें क्षेत्रीय शक्तियों जैसे सऊदी अरब, तुर्की, और अन्य देशों की भी भूमिका है। ईरान की शिया बहुल नीतियों ने उसे सऊदी अरब जैसे सुन्नी बहुल देशों से भी अलग कर दिया है। वहीं, इजराइल के साथ उसके संबंधों में भी तनाव रहा है।
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा मानते हैं। इजराइल और सऊदी अरब के बीच सुरक्षा संबंधों में हाल के वर्षों में सुधार देखा गया है, जो मुख्य रूप से ईरान के खिलाफ एक साझा चिंता के कारण हुआ है।
इजराइल-ईरान संबंधों में अमेरिका की भूमिका
अमेरिका इजराइल का प्रमुख सहयोगी रहा है, और उसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगाम लगाने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय प्रयास किए हैं। 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) के तहत, ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने के लिए सहमति दी थी। हालांकि, 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया, जिससे ईरान और पश्चिम के बीच तनाव और बढ़ गया।
अमेरिका के इजराइल के प्रति सुरक्षा प्रतिबद्धता ने भी इस संघर्ष को और जटिल बना दिया है। अमेरिका ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि वह इजराइल की सुरक्षा के लिए किसी भी स्थिति में साथ देगा, जिससे इजराइल और ईरान के बीच के संभावित युद्ध में अमेरिका की भागीदारी भी हो सकती है।
साइबर युद्ध और गुप्त संघर्ष
इजराइल और ईरान के बीच का संघर्ष केवल परंपरागत युद्ध के तरीकों तक सीमित नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में, दोनों देशों के बीच साइबर युद्ध और गुप्त सैन्य कार्रवाइयों में भी वृद्धि देखी गई है।
स्टक्सनेट वायरस के मामले में, माना जाता है कि इजराइल और अमेरिका ने मिलकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बाधित करने के लिए यह साइबर हमला किया था। इसके अलावा, ईरानी वैज्ञानिकों की रहस्यमयी हत्याओं में भी इजराइल की संलिप्तता का आरोप लगा है।
संभावित युद्ध के प्रभाव
इजराइल और ईरान के बीच युद्ध के संभावित परिणाम कई होंगे। सबसे पहले, यह युद्ध पूरे मध्य पूर्व को अस्थिर कर सकता है। लेबनान, सीरिया, और इराक जैसे देश, जहां ईरान समर्थित मिलिशिया सक्रिय हैं, इस संघर्ष में सीधे तौर पर प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा, इजराइल और ईरान के बीच युद्ध का वैश्विक ऊर्जा बाजार पर भी गंभीर असर हो सकता है, क्योंकि मध्य पूर्व विश्व की ऊर्जा आपूर्ति का एक प्रमुख केंद्र है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
यदि इजराइल और ईरान के बीच युद्ध होता है, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण होगी। अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी शायद इजराइल का समर्थन करेंगे, जबकि रूस और चीन ईरान के साथ अपने संबंधों के कारण संघर्ष को शांत करने के प्रयास कर सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी इस युद्ध को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास कर सकती हैं। हालांकि, अगर यह संघर्ष एक बड़े युद्ध में बदल जाता है, तो इसका प्रभाव वैश्विक शांति और सुरक्षा पर गहरा हो सकता है।
इजराइल-ईरान संघर्ष का भविष्य
हालांकि वर्तमान में दोनों देशों के बीच खुला युद्ध नहीं हो रहा है, लेकिन यह तनाव किसी भी समय बड़े संघर्ष में बदल सकता है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम और इजराइल की सुरक्षा चिंताएं दोनों के बीच के तनाव को और बढ़ा रही हैं।
इजराइल ने कई बार कहा है कि वह ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, जबकि ईरान अपनी नीतियों पर कायम है। इसलिए, भविष्य में इन दोनों देशों के बीच संघर्ष की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष
इजराइल और ईरान के बीच तनाव एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जो केवल इन दोनों देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर पूरे मध्य पूर्व और वैश्विक राजनीति पर भी हो सकता है। यह संघर्ष केवल सैन्य या राजनीतिक नहीं है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक विभाजन भी हैं।
इस लेख में हमने इजराइल और ईरान के बीच के संघर्ष के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है, और यह समझने का प्रयास किया है कि यह संघर्ष भविष्य में किस दिशा में जा सकता है। इजराइल और ईरान के बीच शांति की संभावना फिलहाल दूर नजर आती है, लेकिन कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के माध्यम से इस तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है।
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